यज्ञ
यज्ञ वैदिक संस्कृति का प्राण तत्व है| इसे अग्निहोत्र, हवन और देवयज्ञ इन नामों से भी जाना जाता है| हमारे धार्मिक ग्रन्थ में जो सोलह संस्कार वर्णित किये गये है, यह यज्ञ हर संस्कार की आत्मा है| बिना यज्ञ के कोई भी संस्कार सम्पन्न नही होता | निःस्वार्थ भावना और परोपकार की दृष्टि से किये जाने वाले कर्मो को भी यज्ञ कहा गया है|
वैदिक चिंतन परम्परा में यज्ञ का आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक दोनों प्रकार से महत्व वर्णित है| यज्ञ में उच्चारित वेड मंत्रों की ध्वनियों से मनुष्य के मानस पटल पर श्रेष्ट प्रवृतियों का समावेश होता है | यज्ञ की प्रत्येक आहुति के अंत में 'स्वाहा' एवं 'इद न मम' का उच्चारण मनुष्य के मानस पटल पर व्याप्त स्वार्थ की तामसिक परत को भी क्षीण करता है| यज्ञ मनुष्य में परोपकार एवं कल्याण की भावना को जागृत करता है|
यज्ञ ही प्रकृत के सभी स्थूल तत्वों में शक्ति एवं सुगंध भरता है| पृथ्वी, जल, अग्नी, वायु, आकाश इन पाँच महाभूतों के सूक्ष्म अंशो में मनुष्य का शरीर बनता है| अग्निहोत्र जीवन के आधार इन पाँच तत्वों को शुद्ध एवं पुष्टि प्रदान करता है| यज्ञ की सुगन्धित अग्नि हमारी प्राणशक्ति को सशक्त बनाती है| स्थूल पदार्थ जब अग्नि में पड़कर सूक्ष्म हो जाते है तब उनका प्रभाव का क्षेत्र विस्तृत एवं उनकी शक्ति बढ़ जाती है|
अग्निहोत्र समस्त पदार्थो की सुगंधी को सम्पूर्ण वातावरण में फैला देता है जिससे वायुमंडल में व्याप्त कीटाणु भी नष्ट हो जाते है| यज्ञ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का शुद्ध करने की हमारे ऋषियों द्वरा अनुसंधान की गई पूर्णरूपेण वैज्ञानिक विधि है|
हमारे शास्त्रों में अग्नि को सभी देवताओं का मुख कहा गया है| अर्थात इसी यज्ञ के माध्यम से समर्पित की गई आहुति समस्त देवताओ को प्राप्त होती है| पवित्र भावना से लिया गया यज्ञ मनुष्य के अध्यात्मिक एवं भौतिक सुख को प्राप्त करवाता है| यज्ञ की सुगंध से हमारे आतंरिक और बाहरी वातावरण में पवित्रता का संचार होता है|
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Inspirational post
ReplyDeleteNice guru ji
ReplyDeleteNice sir ji
ReplyDeleteNice Sir
ReplyDeleteJai हिंद
ReplyDeleteMst
ReplyDeleteThanks friends
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